सैयद हुसैन बिलग्रामी के साहसिक कदम भारत से लंदन तक

कमरुल खान✍️

बिलग्राम हरदोई ।। नवाब इमाद-उल मुल्क सैयद हुसैन बिलग्रामी19वीं सदी के इतिहास में एक जाना-पहचाना नाम है। वह निज़ाम के प्रभुत्व में एक प्रसिद्ध शिक्षाविद्, सिविल सेवक, प्रमुख प्रशासक और एक प्रसिद्ध विद्वान थे। आप सय्यद अली बिलग्रामी के बड़े भाई थे आप का जन्म सन 1842 में साहबगंज जिला गया बिहार में हुआ था आपके पिता सय्यद जैन बिलग्रामी उस समय बिहार में डिप्टी कलेक्टर के पद पर आसीन थे आप ने शुरुआती शिक्षा बिहार में हासिल की और उच्च शिक्षा के लिए आप कलकत्ता अपने चाचा आजमुद्दीन के पास चले गए आप पढाई पूरी भी न कर पाये थे कि आपके पिता आपके विवाह के लिए आपको लेकर बिलग्राम आ गये
कुछ महीनों के बाद बिलग्राम से कलकत्ता लौटे तो उन्होंने डिग्री का कोर्स पूरा किया न केवल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए बल्कि पूरेविश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में इतनी काबिलियत प्राप्त की थी कि वह अरबी और अंग्रेजी भाषा के विद्वानों में गिने जाने लगे।अरबी भाषा में आपकीअद्वितीय योग्यता को देखते हुए सन 1868 में कैनिंग कालेज लखनऊ जो अब लखनऊ विश्वविद्यालय है में अरबी भाषा के प्रोफेसर नियुक्त हो गये सन 1872 में सर सालार ए जंग प्रथम निजाम हैदराबाद के प्रधान मंत्री लखनऊ आये तो उनकी मुलाकात सैयद हुसैन बिलग्रामी से हुई। निजाम इनकी योग्यता से इतना प्रभावित हुआ है कि आपको अपने साथ हैदराबाद लेकर चला गया जहां राज्य के तत्कालीन प्रधान मंत्री सालार जंग प्रथम के निजी सचिव व निज़ाम -महबूब अली पाशा के शिक्षक रहे आपने निजाम सरकार में बहुत सम्मान के साथ सेवा की। काम के प्रति उनके समर्पण, चरित्र की दृढ़ता और अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य पर असाधारण पकड़ के लिए ब्रिटिश सरकार ने कई अवसरों पर उनकी सेवाओं का उपयोग भी किया। उन्हें सेक्रेटरी ऑफ स्टेट काउंसिल में सदस्य के रूप में कार्य करने का दुर्लभ सम्मान प्राप्त हुआ। उन्हें लंदन के बकिंघम पैलेस में सालार जंग प्रथम, रानी विक्टोरिया के साथ मुलाकात करने का भी गौरव प्राप्त हुआ।1907 ई0 में लार्ड कर्जन ने आप को यूनिवर्सिटी कमीशन का सदस्य नियुक्त किया। लार्ड मार्ले ने जो भारत में सेक्रेटरी फार स्टेस्ट था आपको इण्डियन कौन्सिल का सदस्य नामित किया। वह भारत के पहले मुसलमान थे जिन्होंने कौन्सिल ऑफ लन्दन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

सैयद हुसैन बिलग्रामी ने लंदन में भारतीय आयाओं और अन्य देखभाल करने वाली महिलाओं के प्रति दयनीय और संवेदनहीन रवैये का कड़ा विरोध किया

भारत के राज्य सचिव की परिषद के सदस्य के रूप में, सय्यद हुसैन बिलग्रामी ने एक बार भारतीय आयाओं और अन्य देखभाल करने वाली महिलाओं के प्रति दयनीय और संवेदनहीन रवैये का कड़ा विरोध करके इतिहास रचा था,कहा जाता है कि उन दिनों कई ब्रिटिशअधिकारियों ने भारत से ब्रिटेन की लंबी यात्रा पर अपने बच्चों की देखभाल के लिए भारतीय आयाओं को साथ लेकर जाते थे लेकिन कई बार ब्रिटेन पहुंचने पर उन आयाओं को बर्खास्त कर दिया जाता था और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाता था। ऐसी स्थितियों के कारण ‘पूर्वी लंदन में एक आया होम’ की स्थापना भी हुई, जहां ऐसी निराश्रित अयाओं को अस्थायी रूप से भोजन और आश्रय प्रदान किया जाता था। मई 1908 में,मुम्बई से एक भारतीय आया मीरा सयाल एक ब्रिटिश परिवार के साथ लंदन पहुंचीं जो घर लौट रहा था। लेकिन परिवार ने उसे बीच लंदन के व्यस्त किंग्स क्रॉस रोड पर केवल एक पाउंड के साथ छोड़ दिया था। यह मामला आया होम के प्रबंधक द्वारा लंदन में भारत कार्यालय के संज्ञान में लाया गया था। ब्रिटिश अधिकारियों की राय थी कि भारतीय आयायें किसी भी लिखित समझौते के अभाव में उनके पास कोई कानूनी उपाय नहीं था कि उन्हें भारत वापस ले जाया जाएगा 1890 में इसी तरह के एक मामले में लंदन में भारतीय कार्यालय ने कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था। लेकिन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट काउंसिल के सदस्य के रूप में सैयद हुसैन बिलग्रामी को बेहद नाराजगी महसूस हुई और उन्होंने तुरंत”बेईमान और क्रूर यूरोपीय नियोक्ताओं द्वारा भारतीय नौकरों को अपने साथ यात्रा करने के लिए मजबूर करने और ब्रिटेन पहुंचने पर उन्हें छोड़ देने” पर कड़े शब्दों में नाराजगी जताते हुए खत लिखा। जिसके बाद वहां बंधुआ मजदूरों की तरह काम पर जाने वाली आयाओं को भारत से जाने और आने का मौका मिलने लगा सैयद हुसैन बिलग्रामी के इस साहसिक रुख से पता चलता है कि वह कितने ऊंचे सिद्धांतों और उच्च आदर्शों वाले व्यक्ति थे, जिनमें कर्तव्य की गहरी भावना और ईमानदारी थी। 14 जुलाई, 1908 के इस पत्र को ब्रिटिश नियोक्ताओं के खिलाफ एशियाई कार्यवाहकों की भविष्य की कई शिकायतों में उद्धृत किया गया था, जिससे अंततः भारतीयों की बेहतरी हुई।और भारतीय आयाह ब्रिटिश परिवारों के साथ लंदन जाने आने लगीं।

हैदराबाद में सय्यद हुसैन बिलग्रामी की प्रमुखता एक शिक्षाविद् के रूप में उनके काम के कारण बढ़ी।

सार्वजनिक शिक्षा के पहले निदेशक (1875-1902) के रूप में उन्होंने राज्य में शैक्षिक व्यवस्था में सुधार के लिए कई सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के साथ निज़ाम कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके पहले प्रिंसिपल डॉ. अघोरनाथ चट्टोपाध्याय (सरोजिनी नायडू के पिता) थे। ऐसा कहा जाता है कि बिलग्रामी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने चट्टोपाध्याय में प्रतिभा की खोज की थी, जो एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में डी.एससी की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे। कॉलेज मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध था क्योंकि उस समय तक हैदराबाद प्रभुत्व में कोई विश्वविद्यालय नहीं था। बिलग्रामी को कुछ वर्षों के लिए भारत सरकार द्वारा वर्तमान यूजीसी के अग्रदूत, विश्वविद्यालय आयोग के सदस्य के रूप में लिया गया था। हैदराबाद में उन्होंने मदरसा-ए-अइज़ा की स्थापना की। यह विशेष रूप से रईसों के बच्चों के लिए एक स्कूल है जिसका उद्देश्य उन्हें सुसंस्कृत और समाज के प्रति अधिक जिम्मेदार बनाना है। हैदराबाद में शिक्षा को आगे बढ़ाने में बिलग्रामी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 1885 में अपने व्यक्तिगत धन से एक गर्ल्स स्कूल की स्थापना थी। इसे देश में अपनी तरह की अनूठी शिक्षा के रूप में सराहा गया क्योंकि लड़कियों को सामान्य विषयों के अलावा, सुई का काम, घरेलू कर्तव्यों आदि की शिक्षा दी जाती थी। उर्दू और अरबी के अलावा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया था। पारंपरिक परिवारों की लड़कियों को स्कूल ले जाने और घर वापस लाने के लिए पर्दों वाली बैलगाड़ियों की व्यवस्था की जाती थी। हैदराबाद में शिक्षा को आगे बढ़ाने में बिलग्रामी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 1885 में अपने व्यक्तिगत धन से एक गर्ल्स स्कूल की स्थापना थी। इसे देश में अपनी तरह की अनूठी शिक्षा के रूप में सराहा गया क्योंकि लड़कियों को सामान्य विषयों के अलावा, सुई का काम, घरेलू कर्तव्यों आदि की शिक्षा दी जाती थी। उर्दू और अरबी के अलावा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया था। पारंपरिक परिवारों की लड़कियों को स्कूल ले जाने और घर वापस लाने के लिए पर्दों वाली बैलगाड़ियों की व्यवस्था की जाती थी। हैदराबाद में शिक्षा को आगे बढ़ाने में बिलग्रामी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 1885 में अपने व्यक्तिगत धन से एक गर्ल्स स्कूल की स्थापना थी। इसे देश में अपनी तरह की अनूठी शिक्षा के रूप में सराहा गया क्योंकि लड़कियों को सामान्य विषयों के अलावा, सुई का काम, घरेलू कर्तव्यों आदि की शिक्षा दी जाती थी। उर्दू और अरबी के अलावा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया था। पारंपरिक परिवारों की लड़कियों को स्कूल ले जाने और घर वापस लाने के लिए पर्दों वाली बैलगाड़ियों की व्यवस्था की जाती थी। हैदराबाद राज्य में, औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने की दृष्टि से, बिलग्रामी ने राज्य के तीन महत्वपूर्ण शहरों, औरंगाबाद, वारंगल और हैदराबाद में तीन औद्योगिक स्कूल स्थापित किए, जो बाद में इंजीनियरिंग कॉलेज बन गए। हैदराबाद में राज्य केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना का श्रेय भी सैयद हुसैन बिलग्रामी के अथक प्रयासों को जाता है।

स्रोत – प्रोफेसर अकील बिलग्रामी की प्रोफाइल व तारीख ए बिलग्राम से।

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