नगर में मद्धम पड़ी उर्दू अदब की शमा को कर रहे रौशन
बिलग्राम हरदोई। । बिलग्राम नगर कभी शायरों और लेखकों का केंद्र रहा करता था जहां से पूरे देश के लोग इल्मो फन के छलकते जाम से सैराब हुआ करते थे। यहां पर हिंदी उर्दू और फारसी के वो नामवर शायरों ने जन्म लिया है। जिन्होंने देश ही नहीं बल्कि बैरूनी मुल्कों में भी अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। बिलग्राम में पैदा हुए मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी, रसलीन, मीर अब्दुल जलील, मीर मधनायक सय्यद मुबारक हुसैन बिलग्रामी का नाम सर्वोपरि स्थान पर लिया जाता है यहाँ 15 सौ ईस्वी से लेकर 19 सौ ईस्वी तक इल्मो अदब की शमा चारो ओर रोशनी फैलाती रही लेकिन सन 1900 ईस्वी से ये शमा धीरे-धीरे मद्धम पड़ने लगी यहां से ज्यादातर शायरों, और लेखकों, ने अपनी आजीविका चलाने और रोजी-रोटी की तलाश में बिलग्राम से बाहर कूच कर गये ।
बिलग्राम में जहां कभी गुलाम हसनैन कद्र बिलग्रामी , फ़रजंद अहमद सफीर बिलग्रामी, शादां बिलग्रामी , फौक बिलग्रामी, हम्द बिलग्रामी जैसे लोगों की मौजूदगी में शेर व सुखन की खूब महफ़िलें सजती थी। उन शोअरा की वफात के बाद वहां पर अंधेरा सा छाने लगा । अभी हाल ही में कुछ शायर जो बिलग्राम की रवायतों को जिंदा किये हुए थे वो भी इस दुनिया से कूच कर गये। जिनमें सबा बिलग्रामी, डाक्टर रफीक रस सिंधु, बिलग्रामी आदि हैं। लेकिन जाते जाते उन सुखनवर ने एक ऐसा शागिर्द बिलग्राम को दिया है जो शायद बिलग्राम की तहजीब व तमद्दुन और उर्दू अदब को अपनी कलम से बरकरार रखने के लिए काफी हो, उस शागिर्द का नाम असगर अली जहूरी है। आप की पैदाइश मोहल्ला मैदानपुरा में 15 जुलाई सन 1982 को हुई आपके वालिद का नाम जहीरुद्दीन शाह अलमारूफ छोटे मियाँ है। आपकी शुरुआती शिक्षा नगर के ही मदरसा इस्लाहुल मुस्लिमीन ऊपरकोट बिलग्राम में हुई, जिसके बाद आपने हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परिक्षा नगर के प्रतिष्ठित संस्थानों में एक बीजीआर इंटर कालेज से पास की, उच्च शिक्षा के लिये आपने 2002 में छत्रपति शाहू जी महाराज यूनिवर्सिटी कानपूर से बीए और उसके बाद 2004 में एम ए पास किया, आपको उर्दू अरबी और फारसी का ज्ञान मौलाना अब्दुल वहाब से मिला, आप पढाई के दौरान ही शेयरो शायरी करने लगे थे लेकिन इस्लाह के लिए आप को उस्ताद की जरूरत हुई तो आपने उस वक्त नगर में मौजूद शायर सबा बिलग्रामी, और डाक्टर रफीक रस सिंधु बिलग्रामी से राब्ता किया और उन्हें अपना नमूना ए कलाम सुनाया, आपका कलाम सुनकर सबा बिलग्रामी ने आपकी की हौसला अफजाई की और आपको शेयरो शायरी की बारीकियां भी सिखाईं आप शुरुआती दौर में नगर में होने वाले हर छोटे बड़े प्रोग्राम, मजलिस, में हिस्सा लेते और अपना कलाम सुनाते, आपने जिले के बाहर पहला स्टेज प्रोग्राम 2012 में उन्नाव जिले के देवगांव में किया, जब आपने वहां अपना कलाम लोगों को सुनाया तो चारो तरफ मौजूद भीड़ से खूब वाहवाही लूटी, उस समय वहां मंच का संचालन कर रहे रामेन्द्र सिंह राज ने आपका नंबर लिया और अपनी पत्रिका साहित्य साधना में छपने के लिए गजल की आपसे फरमाइश की तब से लेकर आज भी ये काम जारी है।
असग़र बिलग्रामी का इन दिनों’ उत्तर प्रदेश में उर्दू अदब के नामचीन शायरों में शुमार किया जाता है। आप नज़्म, रुबाइयत, गीत, नौहे, मनकबत, आदि सभी कुछ लिखते हैं। लेकिन ग़ज़ल की तरफ आपका झुकाव अधिक है। एहसासों को लफ़्ज़ों मे पिरोकर बहर में कह देना असगर बिलग्रामी को बखूबी आता है, इसीलिए लोग आपकी शायरी को खूब पसंद करते हैं। वैसे तो असग़र बिलग्रामी बाल कल्याण प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को पढ़ाते हैं और साथ ही आप मुशायरों कवि सम्मेलनों में भाग भी लेते हैं आप का नमूना ए कलाम इस प्रकार हैं।
*नात*
खुदा के दर पे मुआफी है हर खता के लिए
उठाओ हांथ अभी वक्त है दुआ के लिए
नबी के नाम पे हस्ती मिटा के देखो तो
ज़माना याद करेगा तुम्हें सदा के लिए
*मनकबत*
करें क्यों न हम एहतरामे सहाबा
पयामें नबी है पयामें सहाबा
अबू बकरो फारूख उस्मान हैदर
उन्ही से है फैज ए दवा में सहाबा
*ग़ज़ल*
चलेंगी मुल्क में जुल्मों सितम की आंधियां कब तक
हमारे आशियानों पर गिरेंगीं बिजलियाँ कब तक
कोई इस दौर के दानिशवरों से पूछे ये असगर
कि मायें बहनें यूं लेती रहेंगी सिसकियाँ कब तक
*ग़ज़ल*
बात ही बात में वो बात बढ़ा देते हैं
लोग फितनों को सलीके से हवा देते हैं
जुल्म सब उनके सहे हमने सदा हस हस कर
फिर भी बदले में वफाओं के जफा देते हैं
दर्स अख़लाक़ का असलहा से पाया असगर
हम तो वो हैं कि जो दुश्मन को दुआ देते हैं