पाली/ हरदोई।आज से करीब 22 साल पहले कारगिल की चोटी पर पाकिस्तानी सेना को परास्त कर तिरंगा लहराने वाले हमारे अमर वीर जवानो की याद में पूरा देश कारगिल विजय दिवस के रूप में मना रहा है। कारगिल विजय ऑपरेशन के दौरान दुश्मन देश की सेना को धूल
चटाते हुए देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमर शहीदों की लिस्ट में शहीद आबिद खां का नाम आते ही सिर्फ पाली कस्बे के ही लोगों का नहीं पूरे हरदोई जनपद वासियों का सिर फर्क से सबसे ऊंचा उठ जाता है।
हरदोई जनपद के पाली कस्बे आबिद नगर मोहल्ले के निवासी स्वर्गीय गफ्फार खान पत्नी नत्थनबानौ की कोख से 16 मई 1972 को जन्मे आबिद खान का देश की रक्षा करने का सपना शुरू से ही था उनका यह सपना 5 फरवरी 1988 को पूरा हो गया उनकी ट्रेनिंग जबलपुर में हुई थी, जिसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग डलहौजी में हुई थी, उसके बाद आतंकियों के गढ़ जम्मू कश्मीर में पोस्टिंग हो गई, जहां एक नाले में छिपे आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने वीरता का परिचय देते हुए आतंकियों को ढेर कर उनकी वीरता शौर्य और सूझबूझ से प्रभावित होकर सेना ने उन्हें लॉस नायक का ओहदा प्रदान किया। सन 1999 में पाकिस्तानी सेना ने कारगिल क्षेत्र के कई चौकियों पर अपना कब्जा जमा लिया था।आबिद इस समय छुट्टी पर अपने घर आए हुए थे,अचानक आर्मी हेड क्वार्टर से उनके पास सूचना आई थी, पड़ोसी मुल्क देश पर हमला कर दिया है।आबिद खान ने बिना देर किए ही मानो वह मौके की तलाश में ही थे अपनी गर्भवती पत्नी फिरसौद बेगम से बच्चों का ख्याल रखने की बात कह कर अपनी ड्यूटी पर पहुंच गए। कारगिल की टाइगर हिल चौकी पर कब्जा जमाए पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए आबिद खान की कंपनी भेज दिया गया। 72 जवानों की एक टोली ने टाइगर हिल चोटी की चढ़ाई शुरू की और करीब पहुंचते ही ऊंचाई पर घात लगाए बैठे घुसपैठियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिससे इनकी बटालियन के कई जवान शहीद हो गए।इसी बीच दुश्मन की एक गोली आबिद के पैर में लगी, इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ते हुए इन्होंने एक-एक कर 32 फायर झोंक दिए, जिसे सट्टा घुसपैठिए जमी जोद हो गए और दुश्मन खेमे में खलबली मच गई।इसी बीच दुश्मन की एक बोली आबिद के पेट में आग लगी और भारत माता का सपूत 9 जुलाई 1999 को सदा सदा के लिए अमर हो गया।
___________________
कारगिल विजय दिवस के पूर्व संध्या के मौके पर हर वर्ष खादी व लाल फीता शाही द्वारा शहीद परिवारों की हर संभव मदद और सम्मान के कसीदे गढ़े जाते हैं। इसके बावजूद खुद की जमीन को दबंगों से मुक्त कराने के लिए दर-दर भटक रहे शहीद परिवार के लोग शहीद आबिद खां विद्यालय का नाम बदलकर फिर उच्च प्राथमिक विद्यालय रखने का शहीद परिवार को मलाल है