कछौना, हरदोई।तालाब पोखरों में पानी पूरी तरह खत्म हो चुका है। जिससे इस गर्मी के मौसम में पानी की जटिल समस्या बढ़ती जा रही है। तालाबों के सौंदर्यीकरण व रखरखाव के नाम पर लाखों रुपए पानी की तरह बनाया गया है। ऐसे में सूखते तालाब पशु पक्षियों में आवारा पशुओं के लिए समस्या खड़ी हो गई है। विकास खण्ड कछौना में 41 ग्राम पंचायतें हैं, प्रति ग्राम पंचायत में औसत 5 से 6 तालाब है। जिनमें मनरेगा व परंपरागत तालाब हैं। इन तालाबों का उद्देश जल संचयन से ग्राम पंचायत का पानी का स्तर बढ़ाना है। जिससे पशु पक्षियों को पानी की जरूरत पूरी हो सके, जो गर्मी के मौसम में वरदान साबित होते थे। मनरेगा के तहत सूखे तालाबों पर वर्तमान सरकार कोई भी कार्य कराना उचित नहीं समझा। जिससे वह रखरखाव के अभाव में सूखकर उद्देश्य विहीन हो गए हैं। वही ग्राम पंचायतों में स्थित परम्परागत तालाबों को ग्रामीणों ने अपने निजी संसाधनों की पूर्ति के लिए कब्जा कर लिए हैं। यह तालाब राजस्व अभिलेखों में ज्यादातर दर्ज नहीं है। जिनका अस्तित्व खत्म हो चुका है। वहीं प्रशासन द्वारा तालाबों में पानी भरवाने का आदेश हवा हवाई है, क्योंकि इनकी ग्राम पंचायतों ने कार्य योजना फीड नहीं कराई है। जिससे बजट के अभाव में ग्राम पंचायत रुचि नहीं ले रही हैं। वहीं प्रशासन का कहना है नहर व सरकारी नलकूप से जनहित में ग्राम पंचायतें तालाबों में पानी भरवाएं। जिसमें केवल ग्राम पंचायतें कागजों पर पानी भरवाने का कोरम पूरा कर रही हैं। हकीकत में कोई भी तालाब अभी तक पानी नहीं भरवाया गया है। ऐसे में तालाबों में पानी न होने के कारण पशु पक्षी बेहाल हैं। यहां तक पशु पक्षी पानी की कमी के चलते असमय मृत्यु के घाट उतार रहे हैं। सरकार के नुमाइंदे केवल प्रेस नोट फेसबुक, ट्विटर पर अपलोड कर फील गुड़ करा रहे हैं। बुजुर्गों ने तालाबों, पोखरों व कुओं की परिकल्पना यूं ही नहीं की थी, धार्मिक मान्यताओं के साथ इसका मकसद था, पर्यावरण अच्छा बने व पशु पक्षियों की उपलब्धता हो सके।
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