हरदोई।तहसील सवायजपुर क्षेत्र के जनियामऊ गांव में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में चतुर्थ दिवस कथा व्यास पंडित संतोष मिश्र ने बाराह भगवान के अवतार की कथा,कपिल मुनि के जन्म की कथा,जड़ भरत,भक्त प्रहलाद, की कथा सुनाई।
कथा सुनाते हुए बताया कि भागवत के तीसरे स्कंद के 21वें अध्याय में कर्दम ऋषि और देवहूति के विवाह का प्रसंग आता है। यहां पर सांख्य योग प्रणेता भगवान कपिल मुनि के अवतार की कथा आती है। ब्रह्मा की छाया से उत्पन्न कर्दम ऋषि को सृष्टि की वृद्धि के लिए पिता से आदेश मिला। एक दिन महाराज मनु महर्षि कर्दम के आश्रम पर पधारे और महर्षि कर्दम का महाराज मनु की कन्या देवहूति के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। इसके बाद भगवान कपिल ने देवहूति के गर्भ से अवतार लिया।इसके बाद जड़भरत की कथा सुनाते हुए श्री मिश्र ने बताया कि ऋषभदेवजी महाराज के सौ पुत्र थे ऐसा वर्णन आता हैं। इनके सौ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र का नाम है भरत। भरत ने अपने पुत्र सुमति को राजगद्दी पर बिठा दिया और स्वयं वन में चले गये। जहां वे एक हिरण की ममता में पड़ गए। भरतजी घर छोड़कर आये थे भजन करने, लेकिन यहां मन फंस गया। भरतजी की मृत्यु का समय आया, और केवल हिरणी का बच्चा चिन्तन में आ गया, ये सोचते-सोचते प्राण निकल गये। भरतजी महाराज को हिरण के शरीर में जाना पड़ा, लेकिन हिरण की देह में जाने के बाद भरतजी को बड़ी ग्लानि हुई। एकबार वृक्षों में आपस के घर्षण से जंगल में आग लग गयी, आग लगते ही सारे हिरण जंगल छोड़कर भाग गये, लेकिन भरतजी नहीं गये, उसी वन में परमात्मा का चिंतन करते हुए अपनी देह का त्याग कर दिया। भरतजी का तीसरा जन्म एक अंगिरस ब्राह्मण के परिवार में हुआ। जड़ भरत जी महाराज के तीन जन्मों का वर्णन श्रीमद भागवत पुराण में आया है। भरत जी की माँ काली ने रक्षा की थी। आचार्य श्याम जी शरण समेंत भक्तगण मौजूद रहे।