त्याग व आस्था का केंद्र है माता सती रेशमा देवी का मंदिर

कटियारी क्षेत्र के इकनौरा गाँव में स्थित है माता सती का 85 बर्ष पुराना स्थान

खबर निखिल दीक्षित हरपालपुर

हरपालपुर/ हरदोई। जनपद से 38 किलोमीटर दूरी पर स्थित इकनौरा गांव में माता सती के मंदिर पर अषाढ़ी के दिन भारी मात्रा में श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने आते हैं और उनकी मांगी हुई सभी मुरादें माता रानी पूरी करती हैं।
यहां पर अषाढ़ी के दिन माता रानी के दरबार में एक बड़े मेले का भी आयोजन होता है। माता सती रेशमा देवी ने इकनौरा गाँव स्थित 85 बर्ष पुराना माता सती रेशमा देवी का मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। ग्रामीणों का मानना है कि गाँव की 11वर्षीय बेटी के पति की मौत के बाद सती हो गई थी। उन्हीं की स्मृति में पहले एक स्थान व उसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया। श्रद्धालु माता सती के रूप में पूजा करते हैं।क्षेत्र के इकनौरा गाँव में जन्मी रेशमा देवी पुत्री छोटेलाल की शादी वर्ष 1932 में हरदोई जनपद के ही सुरसा थाना क्षेत्र के ग्राम कसरांवा निवासी बंशीधर के साथ हुई थी। शादी के दो दिन बाद तबियत बिगड़ने से बंशीधर की मौत हो गई। ग्रामीणों के मुताबिक, जब बंशीधर की मौत हुई, उस समय रेशमा देवी मायके में थी। कसरांवा से बंशीधर की मौत की खबर जब गाँव पहुंची तो रेशमा देवी ने कसरांवा जाने का निश्चय किया। उस समय बैलगाडियां चलती थीं। रेशमा देवी पिता छोटेलाल के साथ ससुराल के लिए चल दीं। चचरापुर गाँव के पास रेशमा देवी ने बैलगाड़ी रुकवा दी। उन्होंने कहा कि पति की अर्थी इसी ओर आ रही है। उधर गाँव से निकली बंशीधर की शवयात्रा चचरापुर के पास गुलाबबाडी गाँव पहुंची तब तक रात हो गई। इससे शवयात्रा को वहीं रोक दिया गया। इधर रेशमा देवी ने पति बंशीधर के अंतिम दर्शन किये। अगले दिन अर्थी को लेकर शवयात्रा राजघाट पहुंची। रेशमा देवी को परिजन इकनौरा ले आये। जहाँ उन्होंने सती होने की इच्छा जाहिर की। परिजनों ने इसका विरोध करते हुए कमरे में बंद कर दिया। गाँव वाले बताते हैं कि बंद कमरे से रेशमा देवी ने कहा कि पति को मुखाग्नि दे दी गई है। उसे भी बाहर जाने दिया जाये, जिससे वह सती हो सके। रेशमा देवी ने कहा कि कमरे का दरवाजा नहीं खोला गया तो पूरे घर में आग लग जायेगी। ग्रामीणों के मुताबिक इसके बाद रेशमा ने खिड़की से अंगुली बाहर निकाली तो उसमें अग्नि जलने लगी। इसके बाद परिजनों व गाँव वालों ने रेशमा देवी को कमरे से बाहर निकाला। परिजन उन्हें गाँव के बाहर एक बाग में ले गए। यहाँ रेशमा देवी कुश के आसन पर बैठकर गाँव वालों के सामने सती हो गई। मान्यता है कि माता सती के दरबार में आने वाले भक्त कभी खाली हांथ लौटकर नहीं जाता है। उनकी मांगी हुई मुरादे सभी माता रानी पूरी करती हैं। प्रत्येक वर्ष अषाढ़ी पूर्णिमा को माता सती रेशमा देवी के मंदिर पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं और एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
ग्रामीणों के अनुसार, 1934 में रेशमा देवी के सती होने के बाद गाँव में स्थान बनाकर पूजा की जाने लगी। वर्ष 1980 में ग्रामीणों ने मंदिर का निर्माण करा दिया। तब से हर आषाढी पूर्णिमा को मंदिर पर मेले का आयोजन होता है। जिसमें दूर दराज के श्रद्धालु भी शामिल होते हैं।

About graminujala_e5wy8i

Check Also

राजकीय वृक्षों के अवैध कटान में वांछित अभियुक्त को वन रेंज की टीम ने गिरफ्तार कर भेजा जेल

कछौना, हरदोई। वन रेंज कछौना के अंतर्गत चार माह पूर्व समदा खजोहना में 15 राजकीय …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *