हरदोई।विशेष नामक पदार्थ को मूल मानकर प्रवृत्त हुए शास्त्र को ‘वैशेषिक’ कहते हैं। कठोर तपस्या से परमेश्वर की आराधना द्वारा प्राप्त दिव्य ज्ञान से महर्षि कणाद ने वैशेषिक नामक दर्शन-शास्त्र का निर्माण किया, जिससे साधारण जिज्ञासु संसार में रहकर भी संसार के दुखों से स्वयं को विमुक्त कर सके। कणभुक् (कण-कण एकत्र करके भोजन करने वाले) वास्तविक ब्राह्मणवृत्ति वाले महर्षि कणाद के हम सब ऋणीं हैं।
कायाकल्प केन्द्रम् स्थित यज्ञशाला में ८१वें दिन गुरुवार को ‘वैशेषिक दर्शन’ की कक्षा के समापन पर नेचरोपैथ डॉ० राजेश मिश्र ने कहा कि आजकल जो पदार्थ विद्या की प्रबल चर्चा पाई जाती है; उसका भण्डार यही शास्त्र है। परमेश्वर ने इस संसार की रचना किस प्रकार की और किस प्रकार मनुष्य सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ; यह सब इसी शास्त्र से समझा जा सकता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर किस प्रकार घूमती है, किस प्रकार सूर्य की परिक्रमा करती है, भूकम्प किस प्रकार होता है, पानी की ऊर्ध्व गति, बर्फ आदि का जमाव, अग्नि-विद्या तथा उसको प्रयोग में लाने की पद्धति आदि सभी बातें इसी शास्त्र से समझी जा सकती हैं।
परम सत्य को जानने के लिए विगत नौ महीनों से डॉक्टर मिश्र कायाकल्प केन्द्र से बाहर नहीं निकले। कहा शास्त्रों के अनुसार चलने से व्यक्ति इस संसार में सुख से जीता हुआ आत्मोन्नति एवं मोक्ष प्राप्त कर सकता है। बताया पहली जनवरी से नित्य प्रातः हवनोपरान्त ‘न्याय दर्शन’ की कक्षा प्रारम्भ होगी।
डॉ श्रुति, अभिषेक पाण्डेय, शिक्षक नन्द किशोर सागर, शिवकुमार, सोनू गुप्त उपस्थित रहे।