हरदोई।माँ आशा फाउण्डेशन द्वारा गुरुवार को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह की जयंती पर “हिन्दी साहित्य और दिनकर”विषय पर ऑनलाइन विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने अपने उदबोधन में राष्ट्रकवि दिनकर के हिंदी साहित्य में योगदान को रेखांकित किया।
विचार गोष्ठी में बोलते हुए संस्था संरक्षक श्याम जी मिश्र ने कहा कि आजादी के बाद देश को जागृत करने का बीड़ा राष्ट्रकवि दिनकर ने उठाया।दिनकर ने बुद्धिवाद से दूर हटकर धर्म और विश्व बंधुत्व की नींव रखी ।युग दृष्टा साहित्यकार ने धर्म और नैतिकता को विज्ञान के माले में पिरो दिया।दिनकर की कविताओं ने जनमानस को अपने भीतर क्रांति की सुलगती हुई कविता के रूप में एक ज्वाला दे डाली।राष्ट्रकवि दिनकर में प्रकाश ही नहीं अपितु आंच भी है।वरिष्ठ साहित्यकार सतीश शुक्ल ने कहा कि हिन्दी साहित्य में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का स्थान उनके साहित्यिक नाम से कम नहीं आंका जा सकता। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना, निर्भीकता से विषयवस्तु को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना,देश,काल परिस्थिति पर चिंतन कर अपने काव्य द्वारा लोगों को सोचने पर मजबूर करना और विजयी मुद्रा में अपने विचारों को रखने की अद्भुत क्षमता थी जो आज भी उनके साहित्य में परिलक्षित होती है।युवा कवि विपिन त्रिपाठी ने कहा कि प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक व विचारक साथ ही जनमानस की पीड़ाओं को ओजपूर्ण अभिव्यक्ति द्वारा जन जन तक पहुचाने वाले दिनकर जी सच्चे अर्थों में आम जनता के कवि थे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डा श्वेता सिंह गौर ने कहा कि दिनकर जी आधुनिक युग के सच्चे सूर्य थे। वे अपने युग से काफी आगे थे, दूरदृष्टा थे।स्वभाव से विनम्र होते भी उन्होंने कभी सत्य कहने में कोई संकोच नहीं किया। राज्यसभा में हिन्दी भाषियों की उपेक्षा और अनादर का उन्होंने स्पष्ट रूप से विरोध किया।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि रामदेव बाजपेई ने कहा कि “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ” जैसी कालजई कविताओं के रचयिता पद्म विभूषण रामधारी सिंह दिनकर जी की कविताओं में एक ओर ओज , विद्रोह और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति। हरिवंश राय बच्चन जी के अनुसार दिनकर जी को अगर चार ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलते तब उनका सच्चा सम्मान होता ।प्रतीक शुक्ला, गीतेश दीक्षित व आकाश सिंह ने भी अपने विचार रखे।संस्थाध्यक्ष अजीत शुक्ल ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।