डारि नाग ऋषि कंठ में, नृप ने कीन्हों पाप। होनहार हो कर हुतो, ऋंगी दीन्हों शाप॥
टोंडरपुर हरदोई। । टोडरपुर ग्राम वासियों के तत्वावधान में पवित्र धाम बांसे बाबा उमरौली स्थित चल रहे श्रीमद्भागवत कथा और अम्बा यज्ञ के पांचवे दिन बृहस्पतिवार को आचार्य राम मिश्र ने राजा परीक्षित की कथा जिसमें राजा परीक्षित को श्रंगी ऋषि का श्राप का वर्णन किया और साथ ही साथ 5 लोगों का यज्ञोपवीत कार्य गया। एक बार राजा परीक्षित आखेट हेतु वन में गये। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गए तथा पानी की खोज में इधर उधर घूमते घूमते वे श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुँच गये। वहाँ पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किये हुये तथा शान्तभाव से भक्ति में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल माँगा किन्तु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुये कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस आ गये। शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात नही था कि उनके साथ राजा ने क्या किया है किन्तु उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर अत्यधिक क्रोध आया। श्रंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा। इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमण्डल से अपनी अंजुली में जल ले कर तथा मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा। जब परीक्षित को ऋषि के श्राप के बारे में पता चला तो परीक्षित ने सुखदेव मुनि द्वारा श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर के मृत्युरूपी महादुख का निवारण कर लिया।आचार्य राम ने बताया कि अगर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति की जाय तो भक्तो पर अतिशीघ्र भगवान की कृपा होती है।आचार्य राम के मुखारविन्द से कथा सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो गए।इस मौके पर सुशील,रमेश,सुवेश,अवनीश,शास्त्री, शिवप्रकाश,ममता, उमा स्वेता आनंद,वीनू,धीरू,आदि लोग मौजूद रहे।